उड़ते हुए पंछी से अब लेना हमें क्या चाहिए !
ये धरा अपनी ही है, बस इसे अपनाइए ॥ ये धारा ....... ॥
कामना तो कामना है, कामना बस कामना,
कामना के पर कतर, धरणी-धरण बन जाइये ॥ ये धारा...॥
कल्पना माना हमें कुछ दूर तक ले जायेगी,
यथार्थ है आदर्श अपना, बस इसे अपनाइए॥ ये धारा......॥
मुमकिन नही कहीं और जाना छोड़कर निज धाम को।
स्वर्ग से भी श्रेष्ठ सुख, निज धाम में ही पाइए ॥ ये धारा...॥
होना विमुख निज कर्म से नहिं धर्म है मनुष्य का,
संघर्ष ही कटु सत्य है, संघर्षरत हो जाइये॥ ये धारा.......॥
जब तलक है ज़िन्दगी, जीना हमें जीना ही है,
जीना तो तब जीना हुआ, कुछ कर अमर हो जाइये॥ ये धारा....॥
Saturday, September 5, 2009
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poori rachna umda, bahut badhia badhai sweekaren.
ReplyDeletebahut hi sundar rachanaa......yatharth darashan karawaati rachanaa
ReplyDeleteलगता है अच्छी जगह पंहुचा हूँ आज शुभकामनायें आपको !
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