Sunday, June 30, 2019

दुनिया के सामने...


सीने में अपने दर्द को दबाये हम जी रहे।
दुनिया के सामने मुस्कुराये हम जी रहे।।
      कहते हैं लोग पत्थर भी पिघलता है एक दिन।
      पत्थर तो है पत्थर,इसे भुलाये हम जी रहे।।
                             दुनिया के सामने........।।
नफ़रत के दाग़ प्यार से मिट जाते हैं माना।
यही उसूल आज तक निभाये हम जी रहे।।
                             दुनिया के सामने........।।
होगी कभी तो उनको भी,रिश्तों की ये समझ।
इसी हसीं ख़याल को जिलाये हम जी रहे।।
                          दुनिया के सामने...........।।
मेरे गरीब-खाने पे जब से हुआ है आना।
हर इक खता को उनकी छुपाये हम जी रहे।।
                         दुनिया के सामने.............।।
कोई तो दे बता उन्हें,रिश्तों की अहमियत।
नादानियों के उनकी सताये हम जी  रहे।।
                       दुनिया के सामने..............।।
इल्मो-हुनर-अदब का होता है ख़ास मक़सद।
दिल में उमीद ऐसी ही लाये हम जी  रहे।।
     दुनिया के सामने मुस्कुराये हम जी रहे।।

हर रोज़ आफ़ताब...


हर रोज़ आफ़ताब को सलाम करना चाहिए,
रौशनी के घर को आदाब कहना चाहिए।
सोख के समन्दर जो आब देता है-
ऐसे ताप- देव का एहतराम करना  चाहिए।।
                              हर रोज़ आफ़ताब.....।।
नित बिखेर रौशनी रवि तम भगाता है,
सोये हुये को दिनकर प्रातः जगाता है।
रवि-रश्मियों से जीवन धरती पे पलता है-
ऊर्जा-अजस्र स्रोत को प्रणाम करना  चाहिए।
                              हर रोज़ आफ़ताब........।।
दिनकर-दिवाकर-भास्कर-सूरज इसी का नाम,
आकाश का भूषण यही,अनुपम-ललित-ललाम।
इसके बग़ैर लोक का कल्याण नहीं है-
पूजे बिना न इसको, कोई काम करना चाहिए।।
                           हर रोज़ आफ़ताब...........।।
आराध्य है ये सबका औ वन्दनीय है,
अखण्ड तेज-पुंज सूर्य महनीय  है।
अपार शक्ति-कोष का विराट रूप रवि-
सबिता का स्मरण,सुब्ह-शाम करना चाहिए।।
                           हर रोज़ आफ़ताब..........।।
सारे नक्षत्र इसके ही इर्द-गिर्द डोलते,
प्रकाश के समस्त मन्त्र वेद बोलते।
रवि-रश्मियों से रहता समस्त व्योम व्याप्त-
रवि का महत्व-वर्णन,सरे आम करना चाहिए।।
                          हर रोज़ आफ़ताब...........।।
सारे कुदरती कृत्य का है केन्द्र-विन्दु सूर्य,
आबो-हवा औ मौसम का केन्द्र-विन्दु सूर्य।
सूर्य यदि नहीं तो ब्रह्माण्ड निष्प्रयोज्य-
प्रसन्न रवि रहे ऐसा काम करना  चाहिए।।
       हर रोज़ आफ़ताब को सलाम करना चाहिए।।

Sunday, June 16, 2019

प्रकृति-प्रेम की अलख जगायें...



गाँव की गलियाँ सुनी लगतीं,
सूने बाग़-बगीचे।
जलाभाव में सूखे पड़ गये,
खेत सभी बिन सींचे।
चलो,जलाशय-नदी बचायें-प्रकृति-प्रेम की अलख जगायें।।
भीषण ताप प्रचण्ड सूर्य का,
धरती को ललकारे।
कहे प्रदूषण रोको अपना,
जो हो साँझ-सकारे।
मौसम हाहाकार मचायें-प्रकृति-प्रेम की अलख जगायें।।
जंगल जलें, समन्दर उफ़ने,
तूफानों का रेला।
ज्वालामुखी-अवनि-कम्पन का,
रह-रह लगता मेला।
चलो,क़ुदरती भूत भगायें-प्रकृति-प्रेम की अलख जगायें।।
कहीं बवण्डर-चक्रवात से,
वृक्ष-वनस्पति टूटे।
बरपे कहर कहीं विश्व में,
जब-जब घन-घट फूटे।
चलो, रुष्ट जल-देव मनायें-प्रकृति-प्रेम की अलख जगायें।।
माटी खोये उपजाऊपन,
जल का स्तर घटता।
पशु-पक्षी का लोप देख कर,
मन-चित सबका फटता।
चलो,परिन्दा-वंश रखायें-प्रकृति-प्रेम की अलख जगायें।।
अन्धाधुन्ध प्रयोग मशीनी,
घातक-मारक जानो।
विष घोले सबके जीवन में,
ऐसा इसको मानो।
चलो,न ऐसा रोग लगायें-प्रकृति-प्रेम की अलख जगायें।।
जल-कण,भोजन-कण की रक्षा,
मात्र धर्म है अपना।
यदि हो जीवन ऐसा तो,
साकार हो सबका सपना।
चलो,नींद से फिर जग जायें-प्रकृति-प्रेम की अलख जगायें।।