Wednesday, June 13, 2012

अच्छा नहीं लगता...


तड़पना है अगर लिख़ा मेरी तक़दीर में तो,
बहाना आसुओं का इस तरह अच्छा नहीं लगता।
बरसना एक भी क़तरा नहीं जो आब का तो,
गरजना बादलो का इस तरह अच्छा नहीं लगता।।

अच्छा नहीं लगता वो कलरव पंछियों का,
जिन्हें वो छेड़ते हैं मस्त हो शामो-सहर।
शिकारी जाल है फैलाये अगर चारों तरफ तो,
फुदकना पंछियों का इस तरह अच्छा नहीं लगता ।।

खिले हों फूल गुलशन में,जो लबरेज़ खुशबू से,
हवा का बेरहम बहना कभी अच्छा नहीं लगता।
सनम का रूठ के जाना,नहीं आना अगर मुमकिन,
सवरना,प्रेमिका का इस तरह अच्छा नहीं लगता ।।

अच्छा नहीं लगता बिछड़ना रौशनी का दीप से,
मुकरना अपने वादों से कभी अच्छा नहीं लगता।
 ख़ुदा ने जो दिया जीवन तुम्हें इंसान का,
बहकना पी के गिरना इस तरह अच्छा नहीं लगता।।

अच्छा नहीं लगता सदा अच्छाई का रहना,
बदलना उसको भीचाहिए बुराई जिसमे रहती है।
वफ़ा का बेवफ़ा संग प्यार का बंधन नहीं झूठा,
ठहरना देर तक इनका मगर अच्छा नहीं लगता।।



रोशन ये ज़िन्दगी है मुहब्बत की आग से...


लगती है घर में आग जब,घर के चिराग से,
कुदरत का है जवाब समझो,इतेफाक़ से ।।

होती है उलझनों से जब परेशान ज़िन्दगी,
आता है कोई फरिश्ता,देखो,तपाक से ।।

महबूब का मरना,भला,इसका है क्या गिला,
ऐसी फ़िज़ूल बात को,निकालो दिमाग से ।।

करनी पड़ेगी लाख जतन,बेदाग़ रह सको,
वरना,बचा सका न कोई,दामन को दाग से ।।

मिलते हैं सुर से सुर तभी,जब दिल से दिल मिले,
रोशन ये ज़िन्दगी है मुहब्बत की आग से ।।

तबस्सुम....


               
                   उनके होंठो पे तबस्सुम,
                   या खुदा ! क्या नूर था !
                   इक परी के रूप का -
                   सुरुर ही सुरूर था ।

निष्कपट चितवन,चपल,
भोली अदा-स्वर्णाभ तन।
कोमल कपोल की सुर्ख़ियों में-
हुस्न बेग़रूर था ।।

                   उस रोज़ उनका मेरे घर,
                   आना हुआ जब दफ्फ़तन ।
                   सजदा किया दिल झुक गया-
                   जो अबतलक मग़रूर था ।।

जी में आया उनसे अब मैं,
क्या कहूँ-क्या ना कहूँ ।
कह दूँ क्या मैं लुट गया-
कि मेरा क्या क़ुसूर था ।।

                   चाँद रोशन आसमां में,
                   दामिनी दमके जहाँ ।
                   जो पलक झपके ही दमका-
                   वो बदन भर-पूर था।।
                   या खुदा !क्या नूर था ।।


Sunday, June 10, 2012

बेफिक्र ज़िन्दगी...


बेफिक्र ज़िन्दगी को बिताना है अति भला ।
गर रोड़े आयें राह में तो करना ना गिला ।।
जब आये ग़म का दौर तो ना धर्य छोड़ना,
खोना नहीं विवेक जंग से मुंह न मोड़ना ।
जीवन का है ये फलसफ़ा,समझ लो दोस्तों -
जिसने जीया है इस तरह,उसी को सब मिला ।।
                                         गर रोड़े....।।
पर्वत-शिखर पे झूम के बादल हैं बरसते,
नदियों के जल-प्रवाह तो थामे नहीं थमते।
जिन शोख़ियों से शाख पे निकलती हैं कोपले -
थमने न पाये ऐसा कभी शोख़ सिल-सिला ।।
                                        गर रोड़े ....।।
कुदरत का ही कमाल है ये सारी कायनात,
होता कहीं पे दिन है तो रहती कहीं पे रात ।
गुम होते नहीं तारे चमका करे ये सूरज -
महके है सगरो वादी ये फूल जो खिला ।।
                                       गर रोड़े ....।।
जब नाचता मयूर है सावन में झूम के ,
कहते हैं,होती वर्षा तब झूम -झूम के ।
जो श्रम किया है तुमने वो फल अवश्य देगा -
मेहनतकशों के श्रम का मीठा है हर सिला ।।
                                      गर रोड़े ....।।